कुमाऊँ राज्य
कुमाऊँ राज्य, जिसे कूर्मांचल भी कहा जाता था, चन्द राजवंश द्वारा शासित एक पर्वतीय राज्य था, जिसका विस्तार वर्तमान भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में था। राज्य की स्थापना ७०० में सोम चन्द ने की थी। प्रारम्भ में यह केवल वर्तमान चम्पावत जनपद तक ही सीमित था। उसके बाद सोम चन्द ने सुई पर आक्रमण कर उसे अपने राज्य में मिला लिया। सर्वप्रथम राजा त्रिलोक चन्द ने छखाता पर आक्रमण कर पश्चिम की ओर राज्य का विस्तार किया। उसके बाद गरुड़ ज्ञान चन्द ने तराई-भाभर, उद्यान चन्द ने चौगरखा, रत्न चन्द ने सोर और कीर्ति चन्द ने बारहमण्डल, पाली तथा फल्दाकोट क्षेत्रों को राज्य में मिला लिया। १५६३ में बालो कल्याण चन्द ने राजधानी चम्पावत से आलमनगर स्थानांतरित कर नगर का नाम अल्मोड़ा रखा, और गंगोली तथा दानपुर पर अधिकार स्थापित किया। उनके बाद उनके पुत्र रुद्र चन्द ने अस्कोट और सिरा को पराजित कर राज्य को उसके चरम पर पहुंचा दिया। सत्रहवीं शताब्दी में कुमाऊँ में चन्द शासन का स्वर्ण काल चला, परन्तु अट्ठारवीं शताब्दी आते आते उनकी शक्ति क्षीण होने लगी। १७४४ में रोहिल्लों के तथा १७७९ में गढ़वाल के हाथों पराजित होने के बाद चन्द राजाओं की शक्ति पूरी तरह बिखर गई थी। फलतः गोरखों ने अवसर का लाभ उठाकर हवालबाग के पास एक साधारण मुठभेड़ के बाद सन् १७९० ई. में अल्मोड़ा पर अपना अधिकार कर लिया। इतिहासकुणिंद कौलिन्द कुमाऊँ का पहला शासक वंश था, जिसका राज इस क्षेत्र पर ५०० ईसा पूर्व से ६०० ईस्वी तक रहा। इनके बाद कत्यूरी राजाओं ने इस क्षेत्र पर शासन किया। कत्यूरी काल में ही कुमाऊँ में कटारमल, द्वाराहाट तथा बैजनाथ में मंदिरों का निर्माण हुआ। कार्तिकेयपुरा, जहाँ कत्यूरियों की राजधानी थी, और समीप स्थित गोमती घाटी को इस शासक वंश के नाम पर बाद में कत्यूर घाटी कहा जाने लगा। स्थापनाचन्द वंश की स्थापना में जो घटना प्रमुख रूप से स्वीकार की जाती है वह इस प्रकार है कि-इलाहाबाद के झूसी नामक स्थान में चन्द्रवंशी राजपूत रहते थे। उन्ही में से एक कुंवर सोम चन्द अपने २७ सलाहकारों के साथ बद्रीनाथ की यात्रा पर आये, उस समय काली कुमाऊं में ब्रह्मदेव कत्यूरी का शासन था।[1] कुंवर सोमचन्द ने ब्रह्मदेव की एकमात्र कन्या 'चम्पा' से विवाह कर लिया, तथा दहेज में उपहार स्वरूप मिली पन्द्रह बीघा जमीन पर एक एक छोटा सा राज्य स्थापित किया।[2] अपनी रानी के नाम पर ही उन्होंने चम्पावती नदी के तट पर चम्पावत नगर की स्थापना की, और उसके मध्य में अपना किला बनवाया, जिसका नाम उन्होंने 'राजबुंगा' रखा।[3] लोकमतानुसार यह घटना सन् ७०० ई॰ की है। किले के चारों ओर चार फौजदार, कार्की, बोरा, तड़ागी और चैधरी रखे गये। ये चारों फिरकों के नेता थे, जो किलों में रहते थे; इसलिए इन्हें आल कहा जाता था।[4] बाद में ये काली कुमाऊं की चार आल के रूप में प्रसिद्ध हुए।[5] राजा सोमचन्द ने अपने फौजदार कालू तड़ागी की सहायता से सर्वप्रथम स्थानीय रौत राजा को परास्त कर सुई क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया।[6][7] राजा सोमचन्द के बाद उनके पुत्र आत्मचन्द, चन्द वंश के उत्तराधिकारी बने।[8] पश्चात क्रमशः संसार चन्द, हमीर चन्द, वीणा चन्द आदि ने चम्पावत की राजगद्दी संभाली।[9] इस समय चम्पावत और कूर्मांचल (काली कुमाऊं) में लगभग दो-तीन सौ घर थे। विस्तारत्रिलोक चन्द (१२९६-१३०३) ने छखाता पर कब्ज़ा किया, और भीमताल में किले का निर्माण किया।[10] गरुड़ ज्ञान चन्द (१३७४-१४१९) ने भाभर तथा तराई पर अधिकार स्थापित किया।[11] उद्यान चन्द (१४२०-१४२१) ने राजधानी चम्पावत में बालेश्वर मन्दिर की नींव रखी, और चौगरखा पर कब्ज़ा किया।[12] भारती चन्द (१४३७-१४५०) ने डोटी के राजाओं को पराजित किया। रत्न चन्द (१४५०-१४८८) ने बाम राजाओं को हराकर सोर पर कब्ज़ा किया और डोटी के राजाओं को पुनः पराजित किया।[13] कीर्ति चन्द (१४८८-१५०३) ने बारहमण्डल, पाली तथा फल्दाकोट पर कब्ज़ा किया।[14] भीष्म चन्द (१५५५-१५६०) ने चम्पावत से राजधानी खगमरा किले में स्थानांतरित की, आलमनगर की नींव रखी और बारहमण्डल खस सरदार गजुआथिँगा को हारे।[15] बालो कल्याण चन्द (१५६०-१५६८) ने बारहमण्डल पर पुनः कब्ज़ा किया, राजधानी खगमरा किले से आलमनगर स्थानांतरित कर नगर का नाम अल्मोड़ा रखा, और गंगोली तथा दानपुर पर कब्ज़ा किया।[16] रुद्र चन्द (१५६८-१५९७) ने काठ एवं गोला के नवाब से तराई का बचाव किया, रुद्रपुर नगर की स्थापना की, अस्कोट को पराजित किया, और सिरा पर कब्ज़ा किया।[17] पतन१७४४ में, रोहिल्ला नेता अली मोहम्मद खान ने इस इलाके में एक सेना को भेजा और भीमताल के रास्ते से अल्मोड़ा में प्रवेश किया।[18] चन्द सेना उनका विरोध नहीं कर पाई, क्योंकि तत्कालीन शासक कल्याण चंद पंचम, कमजोर और अप्रभावी थे।[19] रोहिल्लाओं ने अल्मोड़ा पर कब्जा कर लिया, और सात महीनों तक वहां ही रहे। इस समय में उन्होंने लखनपुर, कटारमल, कत्यूर, भीमताल तथा अल्मोड़ा के बहुत से मंदिरों को नुकसान भी पहुंचाया।[20] हालांकि अंततः क्षेत्र के कठोर मौसम से तंग आकर, और तीन लाख रुपए के हर्जाने के भुगतान पर, रोहिल्ला बाराखेड़ी में एक छोटी सी सैन्य टुकड़ी छोड़कर वापस अपनी राजधानी बरेली लौट गये।[21] अठारहवीं सदी के अंतिम दशक में गढ़वाल के राजा ललित शाह ने अल्मोड़ा पर आक्रमण कर तत्कालीन राजा मोहन चन्द को पराजित कर दिया। कुमाऊँ पर विजय के बाद उनके पुत्र प्रद्युम्न शाह कुमाऊँ की गद्दी पर बैठे। ललित शाह की मृत्यु के बाद प्रद्युम्न शाह ने कुमाऊँ को गढ़वाल में मिलाकर राजधानी श्रीनगर ले जाने का प्रयास किया, परन्तु मौका पाकर मोहन चन्द ने पुनः अल्मोड़ा पर अपना शासन स्थापित कर लिया। दक्षिण में काशीपुर के अधिकारी नन्द राम ने काशीपुर राज्य की स्थापना कर स्वयं को तराई क्षेत्रों का राजा घोषित कर दिया। इन सभी आपसी दुर्भावनाओं व राग-द्वेष के कारण चंद राजाओं की शक्ति बिखर गई थी। फलतः गोरखों ने अवसर का लाभ उठाकर हवालबाग के पास एक साधारण मुठभेड़ के बाद सन् १७९० ई. में अल्मोड़ा पर अपना अधिकार कर लिया। प्रशासनबद्री दत्त पाण्डेय के अनुसार चन्द शासनकाल में कुमाऊँ तीन प्रशासनिक अंचलों में विभाजित था: कूर्मांचल, अल्मोड़ा और तराई-भाभर।[22] कूर्मांचल अंचल में काली-कुमाऊँ, सिरा, सोर तथा अस्कोट क्षेत्र; अल्मोड़ा अंचल में सालम, बारामण्डल, पाली तथा छखाता; और तराई भाभर में माल, भाभर तथा तराई क्षेत्र सम्मिलित थे। इनके अतिरिक्त कुमाऊँ परगनाओं में विभक्त था। प्रत्येक परगना में एक अधिकारी तैनात रहता था, जिसे लाट कहा जाता था। परगना आगे पट्टियों में, और पट्टी ग्रामों में विभाजित होती थी।
संस्कृतिकुमाऊँ के दो प्रमुख नगर, अल्मोड़ा तथा चम्पावत, की स्थापना का श्रेय चन्द राजवंश को ही जाता है। चन्द काल में कुमाऊँ क्षेत्र के कई प्रसिद्द मंदिरों की स्थापना हुई, जिनमें चम्पावत का बालेश्वर मन्दिर, अल्मोड़ा के रत्नेश्वर, भीमताल का भीमेश्वर महादेव, बागेश्वर का बागनाथ मंदिर इत्यादि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त कुमाऊँनी भाषा का उद्गम भी कुमाऊँ राज्य में ही हुआ। यद्यपि संस्कृत राज्य की आधिकारिक भाषा थी, परन्तु आम बोलचाल में कुमाऊँनी को ही महत्त्व दिया जाता था। इन्हें भी देखेंसन्दर्भटिप्पणियां
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