Share to: share facebook share twitter share wa share telegram print page

 

शिवालिक

शिवालिक
Shivalik
ऋषिकेश के समीप शिवालिक पहाड़ियाँ और गंगा नदी
भूगोल
शिवालिक is located in भारत
शिवालिक
देशभारत, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान
राज्यअरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर
निर्देशांक परास27°46′N 82°24′E / 27.77°N 82.40°E / 27.77; 82.40निर्देशांक: 27°46′N 82°24′E / 27.77°N 82.40°E / 27.77; 82.40
मातृ श्रेणीहिमालय

शिवालिक पहाड़ियाँ (Shivalik Hills) या बाह्य हिमालय (Outer Himalaya) हिमालय की एक बाहरी पर्वतमाला है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक लगभग 2,400 किलोमीटर (1,500 मील) तक चलती है। यह लगभग 10–50 किमी (6.2–31.1 मील) चौड़ी है और इसके शिखरों की औसत ऊँचाई 1,500–2,000 मीटर (4,900–6,600 फुट) है। असम में तीस्ता नदी और रायडाक नदी के बीच लगभग 90 किलोमीटर (56 मील) का गलियारा है, जहाँ शिखर कम ऊँचाई के हैं। "शिवालिक" का अर्थ "शिव की जटाएँ" है। शिवालिक से उत्तर में उस से ऊँची हिमाचल पर्वतमाला है, जो मध्य हिमालय भी कहलाती है।[1][2]

विवरण

तराई में शीतकालीन सूर्योदय

शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय भी कहा जाता है। हिमालय पर्वत का सबसे दक्षिणी तथा भौगोलिक रूप से युवा भाग है जो पश्चिम से पूरब तक फैला हुआ है। यह हिमायल पर्वत प्रणाली के दक्षिणतम और भूगर्भ शास्त्रीय दृष्टि से, कनिष्ठतम पर्वतमाला कड़ी है। इसकी औसत ऊंचाई 850-1200 मीटर है और इसकी कई उपश्रेणियां भी हैं। यह 1600 कि॰मी॰ तक पूर्व में तीस्ता नदी, सिक्किम से पश्चिमवर्त नेपाल और उत्तराखंड से कश्मीर होते हुए उत्तरी पाकिस्तान तक जाते हैं। शाकंभरी देवी की पहाडियों से सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से देहरादून और मसूरी के पर्वतों में जाने हेतु मोहन दर्रा प्रधान मार्ग है। पूर्व में इस श्रेणी को हिमालय से दक्षिणावर्ती नदियों द्वारा, बड़े और चौड़े भागों में काटा जा चुका है। मुख्यत यह हिमालय पर्वत की बाह्यतम, निम्नतम तथा तरुणतम श्रृंखला हैं। उत्तरी भारत में ये पहाड़ियाँ गंगा से लेकर व्यास तक २०० मील की लंबाई में फैली हुई हैं और इनकी सर्वोच्च ऊंचाई लगभग ३,५०० फुट है। गंगा नदी से पूर्व में शिवालिक सदृश संचरना पाटली, पाटकोट तथा कोटह को कालाघुंगी तक हिमालय को बाह्य श्रृंखला से पृथक्‌ करती है। ये पहाड़ियाँ पंजाब में होशियारपुर एवं अंबाला जिलों तथा हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले को पार कर जाती है। इस भाग की शिवालिक श्रृंखला अनेक नदियों द्वारा खंडित हो गई है। इन नदियों में पश्चिम में घग्गर सबसे बड़ी नदी है। घग्गर के पश्चिम में ये पहाड़ियाँ दीवार की तरह चली गई हैं और अंबाला को सिरसा नदी की लंबी एवं तंग घाटी से रोपड़ तक, जहाँ पहाड़ियों को सतलुज काटती है, अलग करती हैं। व्यास नदी की घाटी में ये पहाड़ियाँ तरंगित पहड़ियों के रूप में समाप्त हो जाती हैं। इन पहड़ियों की उत्तरी ढलान की चौरस सतहवाली घाटियों को दून कहते हैं। ये दून सघन, आबाद एवं गहन कृष्ट क्षेत्र हैं। सहारनपुर और देहरादून को जोड़नेवाली सड़क मोहन दर्रे मे शाकंभरी देवी की पहाडियों से होकर जाती है। शिवालिक पर्वत श्रेणियों में बहुत से पर्यटन स्थल हैं जिनमें शिमला, चंडीगढ़, पंचकूला मोरनी पहाड़ियां, नैना देवी,पौंटा साहिब, आदि बद्री यमुनानगर, कलेसर नेशनल पार्क, शाकम्भरी देवी सहारनपुर, त्रिलोकपुर मां बाला सुंदरी मंदिर, हथिनी कुंड बैराज, आनंदपुर साहिब आदि प्रसिद्ध है।

भूवैज्ञानिक दृष्टि से शिवालिक पहाड़ियाँ मध्य-अल्प-नूतन से लेकर निम्न-अत्यंत-नूतन युग के बीच में, सुदूर उत्तर में, हिमालय के उत्थान के समय पृथ्वी की हलचल द्वारा दृढ़ीभूत, वलित एवं भ्रंशित हुई हैं। ये मुख्यत: संगुटिकाश्म तथा बलुआ पत्थर से निर्मित है और इनमें स्तनी वर्ग के प्राणियों के प्रचुर जीवाश्म मिले हैं हिमाद्री हिमालय का उत्तरी भाग में स्तिथ है और दक्षिण में सिबालिक स्थित है। शिवालिक के गिरी पद अथवा हिमालय क्षेत्र के पश्चिम में सिंधु से पूरब और तीस्ता के बीच फैला क्षेत्र फल भाबर का मैदान कहलाता है ।

संयोजन

शिवालिक पर्वत प्रायः बलुआ पत्थर और कॉन्ग्लोमरेट निर्माणों द्वारा निर्मित है। यह कच्चे पत्थरों का समूह है। यह दक्षिण में एक मेन फ़्रंटल थ्रस्ट नामक एक दोष प्रणाली से ग्रस्त हैं। उस ओर इनकी दुस्सह ढालें हैं। शिवापिथेकस (पूर्वनाम रामापिथेकस) नामक वनमानुष/ आदिमानव के जीवाष्म शिवालिक में मिले कई जीवाश्मों में से एक हैं। जलोढ़ी या कछारी (एल्यूवियल) भूमि के भभ्भर क्षेत्रों की दक्षिणी तीच्र ढालों को लगभग समतल में बदल देते हैं। ग्रीष्मकालीन वर्षाएं तराई क्षेत्रों की उत्तरी छोर पर झरने और दलदल पैदा करती है। यह नमीयुक्त मंडल अत्यधिक मलेरिया वर्ती था, जब तक की डी.डी.टी का प्रयोग मच्छरों को रोकने के लिये आरम्भ नहीं हुआ। यह क्षेत्र नेपाल नरेश की आज्ञानुसार जंगल रूप में रक्षित रखा गया। इसे रक्षा उद्देश्य से रखा गया था और चार कोस झाड़ी कहा जता था।

शिवालिक पट्टी के उत्तर में 1500-3000 मीटर तक का महाभारत लेख क्षेत्र है, जिसे छोटा हिमालय, या लैस्सर हिमालय भी कहा जाता है। कई स्थानों पर यह दोनों मालाएं एकदम निकटवर्ती हैं और कई स्थानों पर 10-20 की। मी. चौड़ी हैं। इन घाटियों को ब्न्हारत में दून कहा जाता है। (उदा० दून घाटी जिसमें देहरादून भी पतली दून एवं कोठरी दून के साथ (दोनों उत्तराखंड के कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में,) तथा हिमाचल प्रदेश में पिंजौर दून भी आते हैं। नेपाल में इन्हें आंतरिक तराई भी कहा जाता है, जिसमें चितवन, डांग-देउखुरी और सेरखेत आते हैं।

आबादी

शिवालिक की प्रसरणशील कणों की अविकसित मिट्टी जल संचय नहीं करती है, अतएव खेती के लिये अनुपयुक्त है। यह कुछ समूह, जैसे वन गुज्जर, जो कि पशु-पालन से अपनी जीविका चलाते हैं, उनसे वासित है। ये वनगूजर अधिकतर उत्तराखण्ड के दक्षिण भाग मे तथा सहारनपुर जिले के उत्तर की और पहाडियों मे रहते हैं श्री शाकम्भरी देवी रेंज और सहंश्रा ठाकुर खोल के अलावा बडकला, रेंज और मोहंड रेंज के आसपास अधिक वासित है शिवालिक एवं महाभारत श्रेणी की दक्षिणी तीव्र ढालों में कम जनसंख्या घनत्व एवं इसके तराई क्षेत्रों में विषमय मलेरिया ही उत्तर भारतीय समतल क्षेत्रों एवं घनी आबादी वाले कई पर्वतीय क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक, भाषा आधारित और राजनैतिक दूरियों का मुख्य कारण रहे हैं। इस ही कारण दोनों क्षेत्र विभिन्न तरीकों से उभरे हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Balokhra, J. M. (1999). The Wonderland of Himachal Pradesh (Revised and enlarged fourth संस्करण). New Delhi: H. G. Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788184659757.
  2. Kohli, M. S. (2002). "Shivalik Range". Mountains of India: Tourism, Adventure and Pilgrimage. Indus Publishing. पपृ॰ 24–25. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7387-135-1.
विकिस्रोत में इस लेख से सम्बंधित, मूल पाठ्य उपलब्ध है:

Information related to शिवालिक

Prefix: a b c d e f g h i j k l m n o p q r s t u v w x y z 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9

Portal di Ensiklopedia Dunia

Kembali kehalaman sebelumnya